1 अप्रैल 2015

सदियों की ख़ता और लम्हों को सज़ा

एन डी टी वी इंडिया अकसर रविवार को मुहिम जैसा कुछ चलाता रहता है।

साल-भर हुआ होगा शायद। स्त्रियों की स्थिति को लेकर बातचीत चल रही थी।

किसी गांव में मौजूद एक संवाददाता स्टूडियो में मौजूद अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा की बातचीत किसी ख़ाप पंचायत के मुखिया से करा रहा था। मुखिया हैरान-परेशान सुन रहा था। प्रियंका टीचर की तरह उसे समझा रहीं थीं। सरल को यह खटक रहा था।

मुखिया संभवतः अनपढ़ रहा होगा। वह गांव के बाहर की दुनिया को कितना जानता होगा ? जो कुछ उसने बचपन से अपने गांव-घर में देखा-सीखा, वही वह कर रहा होगा। अगर वह आधुनिक होना चाहे तो उसे यह अतिरिक्त प्रयास करके अर्जित करना होगा। वह इस उम्र में क्या-क्या सीख पाएगा ? क्या-क्या सोच-समझ पाएगा ?

ख़ुद प्रियंका की जो आधुनिकता है उसमें से कितनी उनकी ख़ुदकी अर्जित की हुई है और कितनी माहौल और परिवार से तोहफ़े में मिली हुई !?

संभवतः वह कांवेट में पढ़ीं हैं।

फ़िर फ़िल्म इंडस्ट्री में तो स्कर्ट पहनना उतना ही सामान्य है जितना गांव में धोती पहनना। इस इंडस्ट्री में मित्रता या अन्यत्र यौनसंबंध बनाने में कोई साहस या प्रगतिशीलता जैसी बात है ही नहीं। वहां तो पचासियों सालों से लोग एक-दूसरे के दोनों गाल चूमकर स्वागत करते हैं।

और प्रियंका व अन्य नायिकायों को कपिल शर्मा के शो में क्या हो जाता है !? वहां कपिल अपनी पत्नी के होंठों और रिश्तेदारों का मज़ाक़ उड़ाते नहीं थकते। उनकी एक बुआ है जो शादी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती है। एक दादी है जो शराब पीकर अजीब हरक़तें करती है। वहां जितने भी स्त्री-पात्र हैं, लगता है जैसे स्त्री-अस्मिता का मज़ाक़ उड़ाने के लिए ही रखे गए हैं। मगर वहां कोई फ़िल्मकार चूं भी नहीं करता। कहीं ऐसा तो नहीं कि हम नारी-मुक्ति के मुद्दों और प्रयासों का आकलन भी जातिवाद का फ़िल्टर लगाकर कर रहे हों!

सही बात तो यह है कि दूर-दराज़ के किसी गांव के अनपढ़ मुखिया का रुढ़िवादी व्यवहार नितांत स्वाभाविक है (ठीक वैसे ही जैसे रजत शर्मा का अपनी विचारधारा(!) वाली सरकार से पुरस्कार ले लेना स्वाभाविक है ; आपत्तिजनक तो यह है कि तथाकथित प्रगतिशील/वामपंथी रोज़ाना ‘फ़ासीवाद आ गया’, ‘फ़ासीवाद आ गया’ चिल्ला रहे हैं और प्रगतिशील(!) व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी उसी सरकार से पुरस्कार ले रहे हैं. ‘मैं वामपंथी हूं इसलिए कलाकार हूं’ वाले अपनी ‘हैदर’ के लिए पुरस्कार ले रहे हैं) मगर रोज़ाना देश-विदेश घूम रहे और अपने शो में हीरोइनों के साथ उन्मुक्त व्यवहार कर रहे कपिल शर्मा द्वारा अपने स्त्री-पात्रों को इस भद्दे ढंग से पेश करना निहायत आपत्तिजनक है। और ध्यान देने लायक बात यह है कि यह सब कर चुकने के बाद प्रोग्राम के अंत में गुडनाइट के साथ वे यह भी कहते हैं कि ‘स्त्रियों का सम्मान कीजिए’।

(अगला भाग)

01-04-2015
(जारी)



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