19 सित॰ 2013

यहां हर कोई नहीं पहुंच सकता


‘आपका मेल मिला, मैं आपकी हर मुहिम में आपके साथ हूं।’
‘चलिए, किसीने तो जवाब दिया।’
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‘यह तसवीर कैसी लगा रखी है आपने?’
‘क्यों ठीक नहीं है क्या?’
‘नहीं, नहीं, बहुत गोरे हो रहे हैं आप तो।
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‘आपकी क़िताब तो आई नहीं अभी तक। जल्दी भेजिए...’
‘अरे, आप तो.....थोड़ा धैर्य रखा करें। अभी कोरियर कराके ही आ रहा हूं, रास्ते में ही हूं...’
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‘हमारे बड़े नेताजी का निधन हो गया है, आप इसपर कमेंट डालिए...
‘मैं क्यों डालूं ? नेता जी आपके हैं, मुझे क्या लेना ?’
‘तो फ़िर मैं आपको ब्लॉक......’
‘ज़रुर कीजिए, आपका तो रोज़ का काम है.....’
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‘आज शाम कुछ आतंकवादी जेल से भाग गए हैं, सज़ा पूरी होने में दो-चार दिन ही बाक़ी थे। ज़रुर कोई साजिश है। आप मेरे वॉल पे कमेंट करें....’
‘अरे मैं अभी सोकर उठा हूं, पहले ख़बर तो देख लूं ठीक से....
‘अरे, मैं क्या झूठ बोल रही हूं, टिप्पणी कीजिए......’
‘ठीक है, अभी एक वंचित वर्ग की महिला के साथ बलात्कार हो गया है, पहले आप उसपर टिप्पणी कीजिए.......’
‘हैं!’
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‘क़िताब मिल गई आपकी, यह क्या लिखा है आपने, क्या समीक्षा करवानी है...........
‘आप क्या कोई समीक्षक हैं! अरे ये आपका हौसला बढ़ाने के लिए है....’
‘क्यों, हमें क्या हौसले की कमी है?’
‘अरे, पहले ही दिन से क्या-क्या दुखड़े तो सुना रखे हैं आपने अपने......नहीं ठीक लगा तो मिटा दीजिए......’
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‘एक साहब लेखकों की डायरेक्ट्री निकाल रहे हैं, मेरा बायोडाटा इंग्लिश में है, आप हिंदी कर देंगे?’
‘भेज दीजिए, देखके बताऊंगा।
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‘यह तो बहुत लंबा है, एक पेज़ का मैटर बता दीजिए, कर दूंगा।’
‘एक पेज का....अच्छा मैं बता.....
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‘तीन दिन हो गए आपने बताया नहीं कुछ ?’
‘अभी टाइम नहीं है मेरे पास....’
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‘10 दिन हो गए आपने ट्रांसलेशन नहीं किया। अब उनका फ़ोन आ रहा है, बायोडाटा जल्दी भिजवाएं, अब मैं क्या करुं?’
‘मैंने तो आपसे रोज़ पूछा, आपने बताया ही नहीं, कौन-सा पोर्शन करना है?’
‘आप अपनी क़ाहिली को छुपा रहे हैं.....
‘देखिए, मुझसे आप यह ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’ वाली हरकत मत कीजिएगा....मैं उस तरह का आदमी नहीं हूं.......’
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‘आए दिन आप ब्लॉक करते हो, आए दिन फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजते हो, यह क्या नाटक है?’
‘मैंने कब भेजी? आपको यूंही लग रहा है!’
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‘आज फ़िर आपने यह लिंक भेज दिया। मैं भेज देता तो सुनने को मिलता कि अश्लील गाने भेजते हो!’
‘किसने भेजा, मैंने तो नहीं भेजा!’
‘कमाल है, आपको झूठ बोलने में महारत हासिल है या कोई मानसिक समस्या है?
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‘कविताएं नहीं भेजी आपने, प्लीज़ भेज दीजिए, बिलाल साहब रोज़ाना फ़ोन कर रहे हैं।’
‘अरे मेरी कोई रुचि अब रह नहीं गई है भेजा-भाजी में!’
‘मेरी ख़ातिर भेज दीजिए।’
‘अच्छा देखता हूं, मन हुआ तो आपको ही भेज दूंगा।’
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‘आज भी नहीं आईं आपकी कविताएं ; हमने तो पहले ही कहा था कि आप बीच रास्ते ही हमें छोड़ जाएंगे।’
‘छोड़ जाएंगे!? आपने तो हमेशा प्रगतिशील दिखाया है ख़ुदको! फ़िर यह छोड़ना
-पकड़ना कहां से आ गया ?’
‘अच्छा, आप कविताएं तो भेज दीजिए।’
‘भेज दी हैं।’
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‘आप ढूंढके दिखाईए हमें ; यहां हर कोई नहीं पहुंच सकता।’
‘देखिए इस तरह की पैंतरेबाज़ी में मैं यक़ीन नहीं रखता। अगर आपको मुझे बुलाना ही है तो सीधा कहिए। मैं आ जाऊंगा। बार-बार इस तरह की बातें न किया करें।’
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‘मन नहीं लग रहा आज...’
‘तो थाईलैंड में चले जाईए......’
‘मतलब..!?’
‘...............’
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‘फ़लां साहब शादी के पीछे पड़े हैं, हैंडसम हैं, अच्छा ख़ानदान है, जल्दी मचा रहे हैं....’
‘तो कर लीजिए। इसमें मुझे बताने की क्या बात है!? आपका पर्सनल मामला है। पूछना ही है तो अपने साहब से पूछिए.....’
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19-09-2013

(जारी)

(लिखी जा रही कहानी से कुछ अंश)

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